देहरादून/हरे पेड़ों को काटे जाने और निर्माण के नाम पर सरकारी धन को ठिकाने लगाने के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। जिससे वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। गोविंद वन्यजीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क पुरोला के तहत तीन रेंज सुपिन, रूपिन और सांकरी रेंज आती है। यहां बीते कुछ वर्षों में वन विभाग के अधिकारियों ने मिलीभगत करके सरकारी धन की बंदरबांट की है।उत्तरकाशी जिले के पुरोला में गोविंद वन्यजीव विहार व राष्ट्रीय पार्क की सुपिन वन रेंज में वन विश्राम गृहों के मार्गों की मरम्मत और घेरबाड़ के नाम पर 39 लाख रुपये का घपला सामने आया है।
मजेदार बात यह है कि इन कार्यों के निरीक्षण की रिपोर्ट आलाधिकारियों को दो साल पहले सौंपी जा चुकी है परन्तु आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।राज्य के वन महकमे में एक के बाद एक अवैध रूप से हरे पेड़ों को काटे जाने और निर्माण के नाम पर सरकारी धन को ठिकाने लगाने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इससे विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठ रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार गोविंद वन्यजीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क पुरोला के तहत तीन रेंज सुपिन, रूपिन और सांकरी रेंज आती है।
यहां बीते कुछ वर्षों में वन विभाग के अधिकारियों ने मिलीभगत करके सरकारी धन की बंदरबांट की है। एक शिकायत के बाद तत्कालीनन उप निदेशक डीपी बलूनी की ओर से पार्क क्षेत्र की सुपिन रेंज में कराए गए कामों की जांच में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आईं थीं।विभिन्न कार्यों की जांच के लिए एक टीम गठित जिसमें कुल 38 लाख 77 हजार रुपये के नौ कामों में हेरफेर की बात सामने आई थी। मामला वर्ष 2021 का है। उस बीच कोमल सिंह उप निदेशक के पद पर तैनात थे जो इसी साल 30 सितंबर को रिटायर हो चुके हैं। उनके बाद डीपी बलूनी की उप निदेशक पद तैनाती हुई तो उन्होंने विभिन्न कार्यों की जांच के लिए एक टीम का गठन किया।
उनकी ओर से गठित जांच टीम ने अपने रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर अंकित किया था कि संबंधित सुपिन रेंज में हुए 60 प्रतिशत कार्यों की जांच की गई है। निरीक्षण के दौरान मौके पर अधिकतर कार्य हुए ही नहीं है जबकि संबंधित ठेकेदार को उनका पूरा भुगतान कर दिया गया।बलूनी की ओर से पूरे मामले की जांच रिपोर्ट तत्कालीन वन संरक्षक व राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक डीके सिंह को सौंप दी गई थी। विभागीय सूत्रों से पता चला है कि डीके सिंह ने इस मामले में स्पेशल ऑडिट कराए जाने के निर्देश दिए थे। परन्तु ऑडिट हुआ ही नहीं।
इन कार्यों के लिए जारी हुआ था पैसा
वन विश्राम भवन जखोल की मरम्मत के लिए चार लाख रुपये,
जखोल मठियाणा सिरगा संपर्क मार्ग की मरम्मत के लिए 4.91 लाख रुपये, जखोल मठियाणा सिरगा संपर्क मार्ग के दूसरे हिस्से के लिए 4.95 लाख रुपये, जखोल वन विश्राम गृह नथाणा संपर्क मार्ग की मरम्मत के लिए 2.69 लाख रुपये, जखोल से घटियों का संपर्क मार्ग मरम्मत कार्य के लिए 4.77 लाख रुपये, जखोल से धटियों तक संपर्क मार्ग का दूसरे हिस्से के लिए 3.48 लाख रुपये, मनोरा कक्ष संख्या- दो में सुरक्षा दीवार की निर्माण के लिए 9.97 लाख रुपये, वन विश्राम भवन, नैटवाड़ की मरम्मत के लिए 2.00 लाख रुपये, वन विश्राम भवन, नैटवाड़ में दीवार व एंगल के काम के लिए 2.00 लाख रुपये।
नोट: इनमें से कुछ काम हुए हैं, जबकि अधिकतर का बिना काम के भुगतान कर दिया गया।
मामला दो साल पहले का है अब संज्ञान में आया है तो संबंधित अधिकारियों से प्राथमिक रिपोर्ट मांगी गई है। यदि किसी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है तो संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अनूप मलिक, प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) वन विभाग उतराखंड।