रूद्रप्रयाग/ पंच केदार में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ धाम को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी है। इसी कड़ी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस पर आपत्तियां मांगी हैं। एएसआइ के क्षेत्रीय पुरातत्व अधीक्षक मनोज सक्सेना ने बताया कि दो महीने के अंदर आने वाली आपत्तियों के निस्तारण के बाद इस संबंध में अंतिम अधिसूचना जारी की जाएगी।
राज्य सरकार लंबे वक्त से प्रयासरत थी कि तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार लंबे समय से प्रयासरत है ताकि इसे राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिल पाए। वर्ष 2018 में राज्य सरकार ने एएसआइ को इस के लिए प्रस्ताव भेजा था। और यहां से यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया केंद्र सरकार (संस्कृति मंत्रालय) के निर्देश पर अधीक्षण पुरातत्वविद डा. आरके पटेल ने वर्ष 2018 में ही मंदिर का निरीक्षण किया। उन्होंने मंदिर की स्थिति में सुधार की जरूरत भी बताई थी। जिला कार्यालय रुद्रप्रयाग में प्रभारी अधिकारी देवराज सिंह रौतेला ने बताया कि प्रारंभिक अधिसूचना जारी होने की तिथि से दो माह के अंदर महानिदेशक एएसआइ के नई दिल्ली स्थित कार्यालय में आपत्तियां दर्ज कराई जा सकती हैं।
निरीक्षण के दौरान एएसआइ की टीम को मंदिर के मंडप की स्थिति जर्जर मिली थी। तब दीवारों पर दरार आने के साथ पत्थर खिसकने की बात भी सामने आई थी। इसे लेकर टीम की ओर से प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा गया था। टीम में एएसआइ के पुरातत्वविद सर्वेयर व इंजीनियर शामिल थे।
पंच केदार में तृतीय तुंगनाथ धाम रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 12 हजार फीट की ऊंचाई स्थित तुंगनाथ धाम पंच केदार में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ पहुंचने के लिए ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक सड़क मार्ग से 140 किमी की दूरी तय करनी होती है। यहां से ऊखीमठ होते हुए 70 किमी दूर चोपता पड़ता है।
चोपता से तुंगनाथ मंदिर के लिए 3.5 किमी का पैदल रास्ता है। तुंगनाथ मंदिर का स्थापना काल लगभग एक हजार साल पहले का माना जाता है। यह भी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव स्वजन व ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के दर्शनों के लिए केदारघाटी पहुंचे थे।
भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए बैल का रूप धारण कर वह धरती में समाने लगे। परन्तु तभी भीम ने उन्हें देख लिया और बैल के पृष्ठ भाग को पकड़ लिया। केदारनाथ में शिला रूप में इसी पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं। बैल की भुजा तुंगनाथ में प्रकट हुईं। जबकि अन्य तीन भाग यानी मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमेश्वर में और जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इन पांचों स्थान पर पांडवों ने भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का निर्माण किया ।