केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा अब 5 किलोमीटर हुई कम 12 वर्षों के बाद रामबाड़ा-गरुड़चट्टी मार्ग यात्रियों के लिए खुला।

न्यूज 13 प्रतिनिधि रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग/ केदारनाथ यात्रा की दूरी अब 5 किमी हुई कम हो गई है 12 साल बाद खुला रामबाड़ा-गरुड़ चट्टी मार्ग
साल 2013 में आई आपदा के बाद बंद हुआ रामबाड़ा से गरुड़ चट्टी तक का ऐतिहासिक पैदल मार्ग अब दोबारा यात्रियों के लिए खोल दिया गया है यह मार्ग पहले गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा को सुगम बनाता था।

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केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए बड़ी राहत की खबर है वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद बंद हुआ रामबाड़ा से गरुड़ चट्टी तक का ऐतिहासिक पैदल मार्ग अब दोबारा श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है यह मार्ग पहले गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा को सुगम बनाता था।

 दूरी भी घटेगी यात्रा भी होगी आसान

आपदा के बाद प्रशासन ने नया वैकल्पिक मार्ग बनाया जिससे दूरी 14 किमी से बढ़कर 21 किमी हो गई थी अब पुराने मार्ग के दुबारा शुरू होने से यह दूरी घटकर लगभग 16 किमी रह जाएगी

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इससे यात्रियों को समय और शारीरिक श्रम दोनों में राहत मिलेगी लगभग 6 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है विभाग के सचिव पंकज पांडे के मुताबिक मार्ग के प्राकृतिक स्वरूप बनाए रखते हुए तैयार किया गया है और इसे आगे और चौड़ा करने की योजना है

पारंपरिक पड़ावों को फिर से जीवन मिला

रामबाड़ा और गरुड़ चट्टी, जो कभी मुख्य पड़ाव हुआ थे अब फिर से श्रद्धालुओं और साधु-संतों से गुलजार हो रहे हैं यह मार्ग श्रद्धा इतिहास और प्रकृति का संगम माना जाता है

सुरक्षा इंतजाम और भविष्य की योजना

कुछ क्षेत्रों में अभी भी भूस्खलन की आशंका बनी हुई है परन्तु प्रशासन ने चिन्हित स्थानों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।

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जिला प्रशासन जल्द तय करेगा कि यह मार्ग वन वे रहेगा या दोनों दिशाओं के लिए खुला रहेगा

आस्था का प्रतीक

वर्ष 2013 की आपदा के बाद यह मार्ग पूरी तरह सुनसान हो गया था रामबाड़ा जो कभी केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव हुआ करता था वीरान हो गया था वहीं गरुड़ चट्टी भी जो साधु-संतों और श्रद्धालुओं के विश्राम स्थल के रूप में प्रसिद्ध था अब फिर से जीवंत होता नजर आ रहा है।

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स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मार्ग सिर्फ एक रास्ता नहीं बल्कि आस्था,् इतिहास और प्रकृति का संगम है यह ऐतिहासिक मार्ग केवल एक रास्ता नहीं बल्कि आपदा से उबरते उत्तराखंड की संकल्पशक्ति और श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक बन चुका है।

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