जागेश्वर मोटर मार्ग में चिह्नित किए गए 1000 देवदार के पेड़ों के कटान का जागेश्वर के लोगों ने किया विरोध।

न्यूज़ 13 प्रतिनिधि अल्मोड़ा:-

अल्मोड़ा/ आरतोला तिराहे से जागेश्वर होते हुए भगरतोला तक प्रस्तावित मोटर मार्ग विवादों में आ गया है। मोटर मार्ग में चिह्नित किए गए 1000 देवदार के पेड़ों के कटान का जागेश्वर के लोगों ने विरोध किया है।

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लोगों का कहना है कि ये पेड़ उनकी आस्था के प्रतीक हैं। जागेश्वर दारूक वन में खड़े इन पेड़ों की वे पूजा करते हैं। जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे दारूक वन के नाम से भी पहचान मिली है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यही दारुक वन भगवान शिव का निवास स्थान है। यहां स्थित देवदार के पेड़ों को शिव-पार्वती, गणेश, पांडव वृक्ष के रूप में पूजा जाता है।

अगर इन पेड़ों को काटा गया तो वह आंदोलन के लिए विवश होंगे। स्थानीय लोगों ने एसडीएम भनोली एनएस नगन्याल व कुमाऊं कमिश्नर को ज्ञापन सौंपा। कहा कि कुछ दिन पूर्व वन विभाग के अधिकारियों ने आरतोला तिराहे से जागेश्वर होते हुए भगरतोला की प्रस्तावित सड़क के लिए 1000 देवदार के पेड़ चिह्नित किए है। लगभग सभी पेड़ अभी हरे हैं। कहना है कि हाईकोर्ट ने 2018 में जागेश्वर धाम के तीन किमी के दायरे में पेड़ों के कटान पर रोक लगाई हुई है। इसके बाद भी हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना की जा रही है। कहना है कि जागेश्वर धाम की महत्ता पवित्र जटा गंगा और यहां के देवदार के पेड़ों से है। यहां तक कि पुराणों में भी यह बात सफ लिखी है। तथ्य रखा है कि देवदार 2000 मीटर की ऊंचाई में उगता है, लेकिन यहां 1870 मीटर की ऊंचाई में देवदार के पेड़ हैं। उन्होंने लोगों की आस्था और धाम की मान्यता को देखते हुए आदेश वापस लेने की मांग की है। ऐसा नहीं हुआ तो स्थानीय लोग चिपको की तरह एक और आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।

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दारुक वनों को शिव का निवास माना जाता है और उनकी पूजा भी की जाती है. लोक वाहिनी अल्मोड़ा जागेश्वर में मास्टर प्लान के तहत हो रहे हो रहे सड़क चौड़ीकरण में 1000 देवदार के पेड़ों को काटने की बात सामने आ रही है उसका उत्तराखंड लोक वाहिनी निंदा और विरोध करती है.उत्तराखंड लोक वाहिनी के वरिष्ठ साथी जगत रौतेला ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि जो लोग देवदार के 1000 पेड़ काटने जा रहे हैं क्या उन्हें जरा भी इसका भान है की इसका क्या मतलब है ? वाहिनी ने जिस राज्य के लिए संघर्ष किया उसका इस तरह से विनाश निंदनीय है. राम राज्य की बात करने वाले आस्था के इतने बड़े पवित्र धाम का इस तरह दोहन किसी भी हद तक बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.जो पेड़ काटे जा रहे हैं वह प्राण वायु के साथ-साथ लोगों की आस्था से भी जुड़ा हुआ है. दारुक वनों को शिव का निवास माना जाता है और उनकी पूजा भी की जाती है. जिन्होंने एक पौधा भी न लगाया हो उन्हैं पेड़ होने का मतलब क्या समझ में आएगा, इन लोगों के लिए पेड़ काटना और लगाना दोनों पैसा कमाने का जरिया है।

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आज के समय में जब विरोध की संस्कृति मृतप्राय हो गई है, तो क्या बच पाएंगे ये पेड़? यह एक बहुत बड़ा सवाल है पूरे पहाड़ की अस्मिता के लिए है. तथाकथित विकास के नाम पर विनाश की अवधारणा मानवता के लिए और उत्तराखंड वासियों के लिए बहुत बड़ा संकट बनने जा रहा है।

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