देहरादून/ उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को अलग राज्य बने हुए 23 साल पूरे हो गए हैं। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का जन्म हुआ था। 23 सालों के सियासी सफर में काफी कुछ बदला राज्य ने बहुत कुछ हासिल किया परन्तु उत्तराखंड को जिन सुविधाओं की दरकार है वो आज भी पूरी नहीं हो पाई है बल्कि उल्टा राज्य कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। उत्तराखंड में जहां आज स्थापना दिवस की धूम है। वहीं राज्य पर कर्ज को लेकर डरावने वाले आंकड़े भी सामने आए है। मीडिया रिपोर्टस की माने तो राज्य कर्ज के बोझ के तले डूबा हुआ है।
राज्य स्थापना के दौरान से ही कर्जदार बने उत्तराखंड में अब कर्ज का ऐसा पहाड़ खड़ा हो गया है जिसे चुकता करना आज के हालात में राज्य के लिए मुमकिन नहीं दिखाई देता। बताया जा रहा है कि राज्य की हालात यह हैं कि राज्य पर कर्ज 80,000 करोड़ से ज्यादा का हो चुका है। आने वाले सालों में भी इसमें तेजी से बढ़ोत्तरी की आशंका है। आंकड़े यह जाहिर करते हैं कि कैसे राज्य स्थापना के दौरान राज्य को जो कर्जा मिला उसमें अब तक लगभग 20 गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है।
माना जा रहा है कि प्रति व्यक्ति कर्ज की तुलना की जाए तो एक-एक व्यक्ति 65 हजार रुपए से अधिक के कर्ज तले डूबा नजर आएगा। उत्तर प्रदेश से अलग होने के दौरान राज्य को लगभग 4500 करोड़ का कर्ज विरासत में मिला मौजूदा समय में उत्तराखंड पर लगभग 80,000 करोड़ का कर्ज है। इसमें बड़ी रकम सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में खर्च हो जाती है। बताया जा रहा है कि लगभग 45% कर्मचारी पेंशनर्स और पुराने कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए खर्च करने पड़ते हैं। हालांकि बढ़ते कर्ज के पीछे राज्य में विकास कार्यों की बढ़ती रफ्तार को भी वजह माना जा रहा है परन्तु अयोजनागत मद में होती बढ़ोत्तरी राज्य की सबसे बड़ी चिंता बन गई है। इस मामले में वित्तीय जानकार भी बड़ी चिंता के संकेत देकर राज्य की वित्तीय बिगड़ती स्थिति को बड़ी परेशानी भरा बता रहे हैं।
रिपोर्टस की माने तो 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में यह दर बढ़कर 16 प्रतिशत को पार कर गई। अब कर्ज इससे भी लंबी छलांग लगाता दिखाई दे रहा है। बताया जा रहा है कि वित्तीय समीक्षा रिपोर्ट के आंकलन के अनुसार 2022-23 में कर्ज 25 प्रतिशत से अधिक दर से बढ़ता दिख रहा है। आंकड़े बता रहे है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 1.075 लाख करोड़ रुपए कर्ज की राशि है। जबकि 2021-22 में ये कर्ज की राशी 85486 करोड़ रुपए थी। हालांकि कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के समय में मिली गहरी आर्थिक चोट और उससे उबरने की जिद्दोजहद में कर्ज पर कर्ज लेना सरकार की मजबूरी बन गया।