पिथौरागढ़/ उत्तराखंड सरकार कीड़ा जड़ी (यारसागंबू) का व्यापार करने वालों को सलाखों के पीछे डाल रही है। वहीं दूसरी ओर दुनिया के ऑनलाइन बाजार में कीड़ा जड़ी और उसके उत्पाद धड़ल्ले से बिक रहे है। कीड़ा जड़ी को खुले बाजार में बिक्री का अधिकार नहीं दिए जाने से नाराज जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने मुख्यमंत्री धामीको ईमेल के माध्यम से ज्ञापन भेजकर इसके लिए नीति बनाने की मांग की।
उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में कीड़ा जड़ी एक मुख्य व्यवसाय बन गया है। उत्तराखंड सरकार ने वन पंचायतों को कीड़ा जड़ी खोजने के लिए संग्रहण करने के लिए अनुमति पत्र बनाने का अधिकार आज से 15 साल पहले वर्ष 2008 में दे दिया था। उत्तराखंड सरकार आज तक कीड़ा जड़ी को खुले बाजार में बेचने की अनुमति के मामले में फिसड्डी साबित हुई है। सरकार ने वन विभाग, वन निगम, भेषज संघ को खरीद का अधिकार वर्ष 2012 में दिया था। इनके द्वारा एक दो साल कीड़ा जड़ी खरीदी गई। इन संस्थाओं के द्वारा कीड़ा जड़ी भरपूर मात्रा में भी नहीं खरीदा गया । केवल कुछ किलो खरीद कर खानापूर्ति कर दी गई।
सीमांत के लोगों को कीड़ा जड़ी का मूल्य समय से नहीं मिलने के कारण इन तीनों सरकारी संस्थानों ने कीड़ा जड़ी खरीदना बंद कर दिया है।अब वन निगम विभाग द्वारा कीड़ा जड़ी खरीदने के लिए ठेकेदारों का पंजीकरण किया जाता है। सरकार के दोनों प्रयोग सफल नहीं हो पा रहे है। अगर आज आप दुनिया के ऑनलाइन व्यापार कंपनी के साइट को देखें तो अमेज़न, फ्लिपकार्ट सहित कई कंपनियां कीड़ा जड़ी तथा और उसके उत्पादों को आपके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रहे है।उत्तराखंड में करोड़ रुपए का व्यापार कीड़ा जड़ी से किया जाता है। सरकार को भी करोड़ों का राजस्व प्राप्त हो सकता था परन्तु उत्तराखंड की सरकार इस मामले में अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी गहरी निद्रा में है।
जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने आज राज्य के मुख्यमंत्री धामी को ज्ञापन भेजकर कीड़ा जड़ी को खुले बाजार में बेचने की अनुमति सरकार के जनता से चुने हुए नुमाइंदे ब्यूरोक्रेसी के जाल में फंसे हुए है। इससे उत्तराखंड में कोई भी जनपक्षीय कार्य नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा केवल बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, परन्तु धरातल में कुछ भी नहीं हो रहा है। राज्य बनने के 23 वर्षों में उत्तराखंड की जनता ने केवल नए-नए नारे है। हकीकत में इस राज्य के भीतर नीतिगत मामलों में कुछ भी नहीं हो रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कीड़ा जड़ी का व्यापार है।