गोपेश्वर/ विख्यात भगवान रूद्रनाथ के कपाट खुलने के बाद तीर्थयात्रियों के सम्मुख चाय-पानी और खाने का संकट पैदा हो गया है। वन विभाग द्वारा घास की झोपडिय़ों को हटा देने से तीर्थयात्रियों को अब मुश्किलों के बीच यात्रा करनी पड़ेगी। दरअसल केदारनाथ सैचुरी में आने के कारण रुद्रनाथ मार्ग पर अनादिकाल से घास की झोपडिय़ों और टैंट लगाकर चाय- पानी और खाने की व्यवस्था करने वाले लोगों को वन विभाग ने दुकानों को हटा दिया है। वन विभाग ने इस 18 किमी पैदल मार्ग पर पनार से कुछ नीचे बनी झोपडिय़ों को हटा दिया है। इसी तरह पुल में भी एक-दो दुकाने चल रही थी उन्हें भी हटा दिया गया है। इसके चलते 18 किमी लंबे मार्ग पर तीर्थयात्रियों के सामने अब खाने पीने और रहने का संकट खड़ा हो गया है। बीते साल भी वन विभाग ने इसी तरह की कार्रवाई की थी किंतु तब सैचुरी एरिया से कुछ नीचे कच्ची झोपडियां और टैंट लगाने की अनुमति दे दी गई थी।
इस बार वन विभाग ने कपाट खुलते ही झोपडिय़ों और टैंटों को हटा दिया है। इससे इस यात्रा मार्ग पर व्यवसाय करने वालों को पहले ही झटके में खास नुकसान उठाना पड़ गया है। सरकार एक आऔर पर्यटन को बढ़ावा देकर आजीविका के संसाधनों को मजबूती का दावा कर रही हैं वहीं सरकार के अधिकारी और कर्मचारी सरकार की मंशा को पलीता लगा रहे हैं। बताते चलें कि केदार सैचुरी एरिया में रुद्रनाथ, तुंगनाथ तथा केदारनाथ का क्षेत्र भी आता है। तुंगनाथ तथा केदारनाथ में तो वन विभाग किसी तरह की कार्रवाई से बच रहा है किंतु रुद्रनाथ मार्ग पर तीर्थयात्रियों के लिए खाने पीने का इंतजाम करने वालों को पैदल मार्ग से हटा दिया गया है। इस तरह रुद्रनाथ की यात्रा पर सैंचुरी का ग्रहण लग गया है।
तीर्थयात्रियों के सामने इस कदर संकट गहरा गया है कि खड़ी चढाई पर स्थित रूद्रनाथ धाम के लिए तीर्थयात्रियों को बड़ी मुश्किल से यात्रा करनी पड़ती है। अब तो पैदल मार्ग के बीच में खाने पीने और आराम करने का संकट पैदा हो गया है। स्थानीय लोग वन विभाग के इस रवैये से हैरान परेशान हो गए हैं। कुजौं मैकोट के ताजवर सिंह भंडारी का कहना है कि सेंचुरी एरिया के नियम रुद्रनाथ यात्रा मार्ग पर भी लागू किए जा रहे हैं। हेमकुंड साहिब भी सेंचुरी एरिया में है किंतु वहां कोई व्यवधान नहीं किया जा रहा है। तुंगनाथ और केदारनाथ की यात्रा में भी तीर्थयात्रियों को दिक्कतें नहीं झेलनी पड़ रही है। उन्होने सवाल खड़ा किया कि आखिर रुद्रनाथ पर ही वनविभाग की नजर क्यो पड़ी है। उन्होने मुख्यमंत्री से मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।ऐसा नहीं किया गया तो स्थानीय ग्रामीण आंदोलन को विवश होंगे। पहले भी लोग आंदोलन कर चुके हैं फिर भी समस्या जस की तस खड़ी है।