देहरादून/ उत्तराखंड में निःशुल्क इलाज तो भूल जाइए मरीजों और उनके तीमारदारों को निःशुल्क शौचालय देने में भी राज्य सरकार नाकाम है। वैसे तो राज्य में हर सड़क पर कई जगह आपने स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा लगाए गए बड़े-बड़े पोस्टर देखे होंगे जिसमें बड़े-बड़े वादे नागरिकों के लिए लिखे हुए हैं या ऐसा दर्शाया गया है कि उत्तराखंड के नागरिकों को पूरे भारत में हर राज्य से बेहतर इलाज मिल रहा हो।
नागरिकों को निशुल्क सुविधा, निशुल्क दवा आदि-आदि देने की हजारों घोषणाएं आए दिन होते रहती है स्वास्थ्य मंत्री जहां भी जब भी जिस भी मंच पर पहुंचते हैं स्वयं के मंत्रालय की तारीफ करते थकते नहीं है।अगर बात करें हकीकत की और कुमाऊं के हल्द्वानी में स्थित सुशीला तिवारी अस्पताल कि जो की कुमाऊं तराई और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों के लिए सबसे बड़ा अस्पताल है हजारों की संख्या में हररोज मरीज यहां पहुंचते हैं परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि इस सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों के साथ रहने वाले
तीमारदारों के लिए और हररोज ओपीडी में आने वाले मरीजों
के लिए एक निशुल्क शौचालय भी अस्पताल परिसर में
उपलब्ध नहीं है ओपीडी में अपने नंबर का इंतजार करते हुए
यदि किसी को शौचालय जाना है तो उसे ₹10 देने होते हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों से तराई से अपने मरीज को लेकर अस्पताल में भर्ती करने के बाद जो भी तीमारदार वहां रुकते हैं उन्हें भी
शौचालय के लिए ₹10 देने ही होते हैं। सवाल यह है कि सिर्फ होर्डिंग पोस्टर लगा देने से और स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रचार कर देने से क्या सुविधा धरातल पर पहुंच जाएगी निशुल्क दवा देने का वादा करने वाली सरकार आखिर मरीज के तीमारदारों और नागरिकों को निशुल्क शौचालय देने में भी आखिर कैसे नाकाम है।