चम्पावत, जवानी में ही युवाओं में दिखने लगे बुढ़ापे के लक्षण, सेना की भर्ती दौड़ में ही रिजेक्ट हो रहे हैं अधिकांश युवक।

न्यूज़ 13 प्रतिनिधि पुष्कर सिंह बोहरा चम्पावत

लोहाघाट/ युवाओं की लाइफ स्टाइल, खान-पान, रहन-सहन, गुटका,शराब, धूम्रपान, स्मैक का सेवन, शारीरिक श्रम ना करने से इस उम्र में उनका जो फौलादी शरीर होना चाहिए था, वह अंदर से खोखला हो गया है। पैदल चलने से परहेज कर बैठ कर दौड़ने एवं खेलकूदों से दूर रहने की वजह से इस भरी जवानी में उनमें बुढ़ापे के लक्षण आ रहे हैं। यह कटु सत्य बनबसा में चल रही सेना की भर्ती में देखने को मिला है जहां काफी तादाद में युवा प्रारंभिक दौर में ही बाहर कर दिए है। यह उन युवाओं के हालत है जिनके पुरखे सेना में रहते हुए अपने शौर्य व पराक्रम का इतिहास लिख चुके हैं। इन युवकों की क्षमता इतनी कमजोर हो गई है की दौड़ में सफल होने के बाद वे पुलअप्स या लंबी कूद में हांफने से रिजेंक्ट हो रहे हैं।

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मोबाइल की लत ने युवकों को एक स्थान में ही बांध दिया है। खानपान में जंक फूड शामिल किए जाने से उनकी पाचन शक्ति इतनी खराब हो गई है कि उन्हें शुद्ध दूध भी नहीं पचता है। नशे ने उन्हें अंदर से पूरी तरह खोखला कर दिया है जिससे उनकी शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर भी प्रभावित हो चुका है। इस भर्ती में ऐसे युवकों की क्षमता का शानदार प्रदर्शन देखने को मिला है जो नशे से दूर रहते हुए रोज योग, प्राणायाम, दौड़ने के साथ शुद्ध शाकाहारी संतुलित भोजन करते हैं।

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जिले के पुलिस कप्तान देवेंद्र पिंचा देवभूमि उत्तराखंड के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं मानते हैं। यहां के युवकों में काफी जज्बा एवं प्रतिभा है लेकिन उनके द्वारा हेल्थ की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके ठीक विपरीत जो युवा नियमित दौड़-धूप एवं भर्ती के लिए अपने को तैयार करते आ रहे हैं, उन्हें सेना की भर्ती की कसौटी में आसानी से खरा उतरते देखा गया है। एसपी का कहना है कि यहां की शुद्ध अबोहवा, पर्यावरण में रहने वाले युवक नशे से दूर रहते हुए अपने को पहले से ही भर्ती के योग्य बना ले तो उन्हें उन्हें भर्ती होने से कोई नहीं रोक सकता।

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 पीजी कॉलेज के एनसीसी अधिकारी डॉ कमलेश शक्टा का कहना है कि पहाड़ के लोगों ने अपने शौर्य, पराक्रम व खून से भारतीय रक्षा पंक्ति का स्वर्णिम इतिहास लिखा है। सेना में भर्ती होना यहां के लोगों का शौक नहीं बल्कि अपने पूर्वजों से चली आ रही महान परंपरा है। हम अपने स्वर्णिम अतीत से कैसे वर्तमान में फौज में भर्ती होने के अवसर खोते जा रहे हैं, यह गंभीर चिंता एवं सोचने का विषय है। मुझे इस बात पर संतोष है कि एनसीसी के माध्यम से हम युवाओं को शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं संस्कारिक रूप से सबल बनाने में सफल हो रहे हैं। जो युवा फौज में भर्ती होने से वंचित रह रहे हैं उन्हें सोचना होगा कि कौन से ऐसे कारक हैं जो उनके भविष्य निर्माण की राह में बाधक बन रहे हैं?

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