रुद्रप्रयाग/ कालीमठ घाटी के अंतर्गत कविल्ठा के जंगल पिछले दो दिनों से भीषण आग की चपेट में आने से लाखों की वन संपदा स्वाहा हो गयी है। वन विभाग व ग्रामीणों द्वारा जंगलों में लगी भीषण आग पर काबू पाने के प्रयास तो किये जा रहे हैं। लेकिन जंगलों में लगी आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके चलते आग पर काबू पाना चुनौती बनी हुई है।
कालीमठ घाटी के जंगलों के भीषण आग की चपेट में आने से जीव-जन्तुओं के जीवन भर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जंगलों में भीषण आग लगने का मुख्य कारण दिसम्बर – जनवरी माह में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होना माना जा रहा है। कालीमठ घाटी के जंगलों में लगी भीषण आग पर यदि वकू रहते काबू नहीं पाया गया तो अन्य जंगल भी भीषण आग की चपेट में आ सकतें हैं। वहीं करोड़ों की वन संपदा के नुकसान की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रधान कविल्ठा अरविन्द राणा ने बताया कि वन विभाग व ग्रामीणों द्वारा जंगलों में लगी भीषण आग पर काबू पाने के भरसक प्रयास तो किये जा रहे हैं। लेकिन तेज हवाओं के चलने से आग पर काबू नहीं पाया जा रहा है।
क्षेत्र पंचायत सदस्य जाल मल्ला बलवीर रावत ने बताया कि
जंगलों में लगी भीषण आग पर काबू पाने के प्रयास लगातार
किये जा रहे हैं। आग की चपेट में आने से जीव जन्तुओं के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है। वन क्षेत्राधिकारी ललित बढवाल ने बताया कि वन विभाग के साथ ग्रामीणों द्वारा आग
आग पर काबू पाने के पूरे प्रयास किये जा रहे हैं। परन्तु जंगलों में नमी न होने के कारण जंगलों में लगी आग निरंतर विकराल रूप धारण कर रही हैं जिससे आग पर काबू पाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
जंगलों की आग सूक्ष्मजीवों के लिए बनी मुसीबत
उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों समेत देश के अलग- अलग हिस्सों में जंगलों में आग लगने की घटनाएं साल दर साल बढ़ रहीं हैं। हालांकि आग की घटनाएं गर्मी के मौसम के दौरान अधिक देखने को मिलती हैं लेकिन इस साल सर्दियों के दौरान घटनाएं बढ़ गई हैं। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के मुताबिक पहली नवंबर 2023 से पहली जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं। पिछले साल की तुलना में इसमें भारी वृद्धि देखी जा रही है क्योंकि इससे पहले सालों में इसी अवधि के दौरान लगभग 556 आग लगने की घटनाएं हुई थी। कुछ वक्त पूर्व किए गए एक शोध में कहा गया था कि जंगल की आग यहां रहने वाले सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाती है और उनके विकास को रोकती है। आग लगने के बाद सूक्ष्मजीव कैसे बदलते हैं शोध के हवाले से कहा गया है कि शोधकर्ताओं को इसकी बेहतर समझ से यह अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है कि बैक्टीरिया और कवक पर्यावरणीय बदलावों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं।
शोध के अनुसार विनाशकारी आग के बाद सूक्ष्मजीवों में बहुत बड़ा बदलाव होता है। शोधकर्ताओं ने एक साल तक यह पता लगाया कि बैक्टीरिया और फंगल समुदाय जले हुए जगहों में पत्तों के कूड़े में किस तरह पनपते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि मिट्टी की सतह में उभरते सूक्ष्मजीव मौसम और पौधों के दोबारा उभरने के साथ बदल गए और सूक्ष्मजीवों का संयोजन काफी हद तक फैलने से प्रेरित था। यह शोध एमसिस्टम्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के अनुसार इन सर्दियों के मौसम के दौरान उत्तराखंड के उत्तरकाशी, नैनीताल, बागेश्वर, टिहरी, देहरादून, पिथौरागढ़, पौड़ी के साथ ही अल्मोड़ा सहित लगभग सभी जिलों में जंगल की आग लगने की जानकारी मिली है।