विकास के लिए नम आंखों के साथ ढोल नगाड़े बजा के अपने पुरखों से विरासत में मिले खेतों में आख़री बार करी रोपाई।

NEWS 13 प्रतिनिधि गोपेश्वर:-

जिन खेतों से पीढ़ी दर पीढ़ी अपना खून पसीना बहा कर अपने परिवार अन्न उगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया। बही खेती को अचानक हमेशा के लिए अलविदा कहना पडे तो दर्द कितना असहनीय होगा उसे हर आदमी सायद ही समझ पाए। इसी प्रकार का कुछ गोपेश्वर के सौकोट गांव के लोगों में आजकल आशानी से महसूस किया जा सकता है। लोगों की आंखें नम है। खेतों में इस समय लोग धान रोपते वक्त इस कदर भावुक हैं। जैसा दृश्य अमूमन मां नंदा की विदाई में दिखाई देता है।

वहीं आजकल यहां दिखाई दे रहा है। ऐसा भावुक दृश्य कभी कभार ही नजर आते है। क्योंकि ए मात्र खेत नहीं थे ए विरासत है पीढ़ियों की इनमें उगा अन्न खाकर पले-बड़े फिर इनसे कैसे यूं ही इनसे विदा हो सकते हैं। लेकिन विकास के लिए यहां के लोगों ने अपने खेत सरकार को ढोल-दमाऊं बजाकर सौपे साथ ही गाजे-बाजे के साथ लोगों ने इन खेतों में आखिरी बार रोपाई की। गोपेश्वर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन बनने वाला ए गांव लगभग 200 नाली जमीन को रेलवे के द्वारा अधिग्रहीत किया गया है।

गांव के करीब 150 परिवार रहते हैं और इनका मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। ग्रामीण बैलों के साथ ढोल-दमाऊं लेकर खेतों में पहुंचे। सुबह खेतों में पानी लगाने के बाद महिलाओं ने जीतू बगड़वाल के जागर गाए और साथ ही साथ धान भी रोपती रहीं। उनकी आंखों में अपने खेतों से अलग होने का दर्द साफ झलक रहा था वो बहुत ज्यादा भावुक दिख रही थीं। कुछ महिलाओं के आंखों में आंसू थे। उन्होंने इस उम्मीद के साथ अपने खेत रेलवे को दे दिए हैं। कि रेल की पटरी के साथ ही उनके गांव में विकास और समृद्धि भी आएगी।

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