


NEWS 13 प्रतिनिधि देहरादून:-
भाजपा आलाकमान पिछले कुछ समय से अपने ही मुख्यमंत्रियों के कारण कुछ ज्यादा ही ‘मुश्किलों’ में घिरा हुआ है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा की वजह से भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ‘पशोपेश’ में फंसा है मंगलवार से हाईकमान का योगी सरकार में उठा सियासी घमासान भले ही सुलझाने का दावा किया जा रहा हो लेकिन कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा के खिलाफ वहां के भाजपा नेता विधायकों और मंत्रियों में नाराजगी बरकरार है।
इन सबके बीच उत्तराखंड ने एक बार फिर से भाजपा आलाकमान का ‘सिरदर्द’ और बढ़ा दिया। इसी साल मार्च के महीने में पीएम मोदी और अमित शाह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को एकाएक हटाकर तीरथ सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया उसके बाद पार्टी के आलाकमान ने संदेश दिया था कि अब साल 2022 के राज्य में होने वाले विधान सभा चुनाव तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे।
सबसे बड़ी मुश्किल तीरथ के लिए यह रही कि वह विधानसभा के किसी भी सदन के ‘सदस्य’ नहीं थे। तब उम्मीद जताई जा रही थी कि आने वाले उपचुनाव में राज्य की किसी भी सीट से तीरथ सिंह को लड़ा कर तीरथ सिंह को जिता दिया जाएगा।
परन्तु अभी तक ऐसा नहीं हो सका है यहां हम आपको बता दें कि 10 मार्च 2021 को तीरथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। साढ़े तीन महीने बीत जाने के बाद भी तीरथ और आलाकमान अभी यह नहीं तय कर पाये है कि आखिर तीरथ सिंह रावत उप चुनाव कहां से लड़ेंगे। अब सियासी पंडितों की भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है।
अभी भी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत लोकसभा सांसद बने हुए हैं संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के ठीक छह महीने के अंदर सदन के दोनों सदनों विधान सभा विधान परिषद या (एमएलसी) का सदस्य होना अनिवार्य है। उत्तराखंड राज्य में विधान परिषद नहीं है।
अब उत्तराखंड में संवैधानिक संकट भी खड़ा हो गया है। वजह है मुख्यमंत्री तीरथ का विधानसभा का सदस्य न होना और विधानसभा चुनाव होने में एक साल से कम समय का बचना अब प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का राज्य में मुख्यमंत्री के नेतृत्व परिवर्तन का दांव उल्टा दिखाई पड़ रहा है।








