देहरादून/ उत्तराखंड में एक सूत्रीय मांग को लेकर आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने अब आमरण अनशन का रास्ता अपना लिया है सरकार और विभाग से शिक्षकों की हर वार्ता विफल रही है हालांकि प्रधानाचार्य पद पर जिस भर्ती को लेकर इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी वह भर्ती लोक सेवा आयोग ने स्थगित कर दी है परंतु अब शिक्षक इस मामले में अंतिम निर्णय चाहते हैं।
उत्तराखंड शिक्षा विभाग में इन दिनों शिक्षकों का आंदोलन
सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है राजकीय शिक्षक संघ के बैनर तले हजारों शिक्षक सरकार के उस फैसले के खिलाफ लामबंद हो चुके हैं जिसके चलते उन्हें अपना प्रमोशन खतरे में दिखाई देने लगा है राजकीय शिक्षक
संघ के कई पदाधिकारी इसको लेकर आमरण अनशन पर
बैठ चुके हैं लगातार शिक्षकों की संख्या भी शिक्षा निदेशालय में आंदोलन के लिए बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर जिला स्तर पर भी शिक्षक आंदोलन में जुटे हुए
हैं शिक्षकों की एक सूत्रीय मांग प्रधानाचार्य पद को शत-प्रतिशत प्रमोशन से भरने की है।
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जबकि सरकार ने नियमावली में संशोधन करते हुए 50% पद सीधी विभागीय भर्ती से भरने का निर्णय लिया है इसके लिए बाकायदा लोक सेवा आयोग को अधियाचन भेजा गया और लोक सेवा आयोग ने भी इसके लिए परीक्षाओं की तारीख तय की हालांकि सरकार ने इस मामले में संशोधित नियमावली के आदेश का हवाला देकर इस परीक्षा को स्थगित करने का निर्णय लिया और लोक सेवा आयोग से इसके लिए निवेदन भी किया इसके बाद लोक सेवा आयोग ने भी अब इस परीक्षा को स्थगित करने का आदेश दिया है राजकीय शिक्षक संघ परीक्षा के स्थगित होने के बाद भी मामले को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं है।
राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने बताया शिक्षकों का आंदोलन धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है अब आमरण अनशन की शुरुआत कर दी गई है इसी तरह अगर सरकार ने बातचीत का दरवाजा नहीं खोला और इस पर कोई सकारात्मक रुख नहीं रखा तो शिक्षक अपने आंदोलन को किसी भी स्तर तक ले जाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा आमरण अनशन के बाद शिक्षकों का अगला कदम कार्य बहिष्कार का है जिससे पूरे राज्य में माध्यमिक शिक्षा ठप हो जाएगी राम सिंह चौहान ने बताया कि अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए शिक्षक मजबूर हैं।
और वह नहीं चाहते कि छात्रों की पढ़ाई का नुकसान हो लेकिन शिक्षकों की मजबूरी है कि वह अपने भविष्य के लिए इस तरह का कदम उठा रहे है उन्होंने कहा कि आंदोलन के आगे बढ़ने के बावजूद सरकार की तरफ से बातचीत के दरवाजे अभी बंद नहीं हुए हैं लेकिन इस मामले में राजकीय शिक्षक संघ का स्पष्ट फैसले के कारण कोई बीच का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है।