अनाप-शनाप खर्चों से बड़ा राज्य का बजट निर्धारित बजट था 250 करोड़ उड़ा डाले 450 करोड़ अब आडिट की तैयारी।

न्यूज़ 13 प्रतिनिधि देहरादून

देहरादून/ उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन भले ही सफलता की मिसाल बन चुका हो लेकिन इसके बाद की वित्तीय स्थिति अब सरकार और संबंधित विभागों के लिए सिरदर्द बन गई है। निर्धारित बजट से कहीं अधिक खर्च हो चुका है और इस पर अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।

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खेल विभाग के पास 200 करोड़ रुपये की देनदारी बाकी है और अब वित्तीय राहत के लिए अन्य विभागों से सहयोग की आवश्यकता महसूस हो रही है। वहीं आगामी वर्ष के बजट में भी यह राशि पर्याप्त नहीं साबित हो रही है। इस स्थिति में वित्तीय पारदर्शिता और संकट समाधान को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

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खेल विभाग के निदेशक प्रशांत आर्य के अनुसार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए 250 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था लेकिन असल खर्च लगभग 450 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। खर्चों का हिसाब-किताब अब भी पूरा नहीं हो पाया है और अनुमान है कि जुलाई तक सही आंकड़ा सामने आ पाएगा। इस स्थिति में खेल विभाग के लगभग करीब 200 करोड़ रुपये की देनदारी बाकी है। विशेष प्रमुख सचिव अमित सिन्हा ने वित्तीय स्थिति को संभालने के लिए अन्य विभागों से सहयोग की आवश्यकता महसूस की है।

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उन्होंने अलग-अलग विभागों के सचिवों को पत्र लिखकर मितव्ययता और बचत की जानकारी मांगी है ताकि बचे हुए बजट को राष्ट्रीय खेलों के खर्च के लिए ट्रांसफर किया जा सके। हालांकि, खेल विभाग के पास इतना बजट नहीं है कि वह अपनी पूरी देनदारी चुका सके। विभाग अब अन्य विभागों के समर्पित बजट पर निर्भर होने की योजना बना रहा है लेकिन अन्य विभागों के पास भी सीमित बजट होने के कारण दिक्कतें आ सकती हैं।

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इसके अलावा वित्त विभाग ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए राष्ट्रीय खेलों के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया है जो अभी भी अपर्याप्त प्रतीत हो रहा है। इस स्थिति को देखते हुए खेल विभाग के लिए आकस्मिकता निधि की आवश्यकता महसूस हो रही है ताकि समय पर भुगतान किया जा सके। यदि अतिरिक्त बजट और सहायता नहीं मिलती है तो खेल विभाग के लिए देनदारी को पूरा करना मुश्किल हो सकता है। जैसे जैसे राष्ट्रीय खेलों पर खर्च होने वालीं राशि बढ़ी है अब इस पूरे आयोजन का बजट ऑडिट किया जाना जरूरी हो गया है।

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इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि धन का सही उपयोग हुआ है और वित्तीय पारदर्शिता बनी रहे। इसके आलावा कार्यों की प्रक्रिया की जांच भी की जानी चाहिये ताकि किसी भी प्रकार की अनियमितता या भ्रष्टाचार से बचा जा सके।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और संबंधित विभाग इस वित्तीय दबाव से कैसे निपटते हैं और क्या वे पारदर्शिता से इस संकट का समाधान निकाल पाते हैं।

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