काली शिला पर उभरने लगा भगवान बदरीनाथ का चतुर्भुज स्वरूप।

न्यूज़ 13 प्रतिनिधि देहरादून:-

देहरादून/ राज्य के पंच बदरी में से एक भविष्य बदरी में भगवान बदरीनाथ का चतुर्भुज स्वरूप काली शिला पर धीरे-धीरे आकार लेने लगा है। इस शिला पर पहले फूलों की माला तक नहीं टिकती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे शिला पर माला व शृंगार सामग्री भी अटकने लगी है। शिला के इर्दगिर्द अन्य आकृतियां भी उभर रही हैं। समुद्र तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर देवदार और सुराई के घने जंगल के बीच भविष्य बदरी का प्राचीन मंदिर स्थित है। नंदादेवी पर्वत शृंखला की तलहटी में स्थित भविष्य बदरी मंदिर के कपाट भी बदरीनाथ धाम के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए खोेल दिए जाते हैं। तपोवन के संदीप नौटियाल ने बताया कि मंदिर में पहले एक शिला आकृति थी, जो धीरे-धीरे अपना स्वरूप बदल रही है। उन्होंने बताया कि वह पिछले 20 साल से भविष्य बदरी के दर्शन कर रहे हैं और लगातार शिला के स्वरूप में परिवर्तन देख रहे हैं।

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हर साल शिला बदल रही रूप मंदिर के पुजारी लक्ष्मण सिंह रावत बताते हैं कि प्रतिवर्ष मंदिर की शिला अपना स्वरूप बदल रही है। शिला पर बदरीनाथ के चतुर्भुज रूप के साथ ही अन्य आकृतियां उभर रही हैं। पहले शिला पर तुलसी माला नहीं अटकती थी, लेकिन अब माला के साथ ही शृंगार सामग्री भी अटकने लगी है। बदरीनाथ धाम की तरह ही यहां भी अभिषेक पूजा के साथ ही अन्य नित्य पूजाएं संपन्न होती हैं। चारधाम यात्रा पर पहुंच रहे अधिकांश श्रद्धालु भविष्य बदरी मंदिर के दर्शनों को भी पहुंच रहे हैं। इस वर्ष अभी तक करीब 15,000 श्रद्धालु मंदिर के दर्शन कर चुके हैं।भविष्य बदरी की शिला पर होता है तिल के तेल का लेप बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु योग मुद्रा में विराजमान हैं, जबकि भविष्य बदरी में चतुर्भुज स्वरूप उभर रहा है। बदरीनाथ की तरह ही भविष्य बदरी में भी शिला पर प्रतिदिन अभिषेक के बाद तिल के तेल का लेपन किया जाता है। इसके बाद तुलसी माला, दुपट्टा, फूल माला और जनेऊ का शृंगार किया जाता है। तपोवन के पंडित संदीप नौटियाल का कहना है कि भविष्य बदरी मंदिर का प्रचार-प्रसार अभी कम होने के चलते श्रद्धालुओं की संख्या भी कम ही रहती है। उन्होंने चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं से भविष्य बदरी के दर्शनों को पहुंचने की अपील की है।

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कलयुग के अंत में भविष्य बदरी में दर्शन देंगे बदरीनाथ, बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि केदारखंड के स्कंद पुराण में लिखा है कि कलियुग के अंत में बदरीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जाएगा, तब भविष्य बदरी में बदरीनाथ के दर्शन होंगे। वे कहते हैं कि पुराणों में यह भी लिखा है कि जोशीमठ में जब तक नृसिंह भगवान विराजमान हैं, तब तक बदरीनाथ के दर्शन होंगे।

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लोक मान्यता है कि बदरीनाथ धाम के मार्ग में स्थित जय-विजय पर्वत आपस में मिलकर एक हो जाएंगे, जिसके बाद बदरीनाथ क्षेत्र अगम्य (रास्ता बंद) हो जाएगा।ऐसे पहुंचे भविष्य बदरी मंदिर जोशीमठ से मलारी हाईवे पर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तपोवन बाजार से भविष्य बदरी के लिए सड़क मार्ग निकलता है। रिंगी और सुभाई गांव से होते हुए 13 किलोमीटर तक वाहन से और करीब एक किमी पैदल दूरी तय कर भविष्य बदरी मंदिर पहुंचा जाता है। यहां ठहरने और खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। तपोवन और जोशीमठ में रात्रि प्रवास व खाने की पर्याप्त सुविधा है। पंचबदरी पंचबदरी मंदिरों में बदरीनाथ धाम श्रेष्ठ बदरी है। इसके बाद भविष्य बदरी, आदिबदरी, योगध्यान बदरी और वृद्ध बदरी मंदिर चमोली जनपद के अलग-अलग स्थानों में स्थित हैं। आदिबदरी कर्णप्रयाग क्षेत्र में, योगध्यान बदरी पांडुकेश्वर तथा वृद्ध बदरी मंदिर जोशीमठ के समीप स्थित है। चारधाम यात्रा के दौरान इन मंदिरों में भी श्रद्धालु दर्शनों को पहुंचते हैं।

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