देहरादून/ उत्तराखंड में बड़ा डेमोग्राफिक चेंज हो रहा है सशक्त मूल-निवास, भू कानून की गैरमौजूदगी उतराखंड में किसी भी बाहरी संस्था या व्यक्ति द्वारा उत्तराखंड की भूमि, संपदा और नौकरियों पर कब्जा आज के तारीख में कोई बड़ी बात नहीं है। यहां तक कि धार्मिक स्थल और मजारें बनाकर देवभूमि के जंगलों को भी नहीं बक्शा जा रहा है।
राज्य के कई बड़े गावों और शहरों में हिन्दू अल्पसंख्यक बन रहे हैं और मुस्लिमो की लगातार आवादी बढ़ती जा रही है। उत्तराखंड की डेमोग्राफी में अति तीव्र गति से हो रहे इस बदलाव से उत्तराखंड की जनता परेशान है। उनके सामने पड़ोसी राज्य हिमाचल का प्रत्यक्ष उदाहरण है जहां सशक्त भू कानून ने डेमोग्राफिक चेंज को रोका है नहीं तो उत्तराखंड के साथ ही देश के अनेक अन्य राज्य और भी हैं जिनकी डेमोग्राफी में बहुत तीव्र गति से बदलाव हो रहा है।
इस सब में सरकार और राजनैतिक पार्टियों की मंशा अभी तक मुखर नहीं थी परन्तु अब रमेश पोखरियाल निशंक ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में इसपर बयान दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्य की इस समस्या का सुझाव देते हुए कहा है कि उत्तराखंड में भू – कानून सख्त होना चाहिए। उन्होंने राज्य की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते हुए कहा कि राज्य में भू-कानून सख्त होना ही चाहिए क्योंकि वैसे भी उत्तराखंड की 70% जमीन वन भूमि है। राज्य की 30 प्रतिशत भूमि ही सामान्य भूमि है। इस 30 प्रतिशत भूमि में ही राज्य के गांव, दुकान, मकान के साथ ही शहर बसे हैं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे में राज्य की इस 30% जमीन को संरक्षित रखना हमारी पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए इसे संरक्षित रखने के लिए राज्य में भू-कानून का सख्त होना अतिआवश्यक है। रमेश पोखरियाल निशंक ने आगे कहा कि उत्तराखंड में भू कानून सख्त हो इसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप में इसका समर्थक रहा हूं।
गैरसैण स्वाभिमान रैली की गूंज केंद्र तक इससे पहले मूल निवास, भू कानून और गैरसैण राजधानी के लिए गैरसैंण में समन्वय संघर्ष समिति के बैनर तले हजारों लोग जुटे। महारैली में हजारों की संख्या में महिलाएं जुटी और आस पास के क्षेत्रों से महिला मंगल दलों ने महारैली में सहभागिता की आस पास के सभी व्यापार मंडलों के हजारों लोगों ने इस प्रकरण को नेशनल मुद्दा बना दिया। पिछले
काफी वक्त से रुद्रप्रयाग, श्रीनगर गढ़वाल, कोटद्वार से लेकर गैरसैण तक उत्तराखंड का युवा संघर्ष कर रहा है। युवाओं के साथ हर जगह दिखने वाले समन्वय संघर्ष समिति के मोहित डिमरी कहते हैं उत्तराखंड बने 24 वर्ष हो गए परन्तु उत्तराखंडियों को सत्ताधारी पार्टियों द्वारा उनके अधिकार से वंचित रखा गया। उनके जल, जल, जंगल, संसाधनों और रोजगार पर आज दूसरे राज्यों के लोगों का कब्जा हो गया। अब समय आ गया है कि राज्य की जनता मूलनिवास 1950 सशक्त भू कानून और स्थाई पनी गैरसैंण के लिए एकजुट हो।
समिति के सह संयोजक लुशून टोडरिया ने कहा कि गैरसैंण में जुटे हजारों लोगों ने बता दिया है अगर उत्तराखंड में मूल निवास 1950, सशक्त भू कानून लागू नहीं होता और स्थाई राजधानी गैरसैंण नही बनती तो उत्तराखंड की जनता सड़कों पर उतरकर सत्ता के विरोध में सड़कों पर उतरेगी। लुशून ने कहा भाजपा और कांग्रेस बताएं आजतक उन्होंने मूल निवास, भू कानून और गैरसैंण राजधानी की बात सदन में क्यों नहीं उठाई।
स्वाभिमान महारैली समन्वय संघर्ष समिति की ये हैं प्रमुख मांगें
मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए। प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।
गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित किया जाए।
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण रुप से प्रतिबंध निबंध लगे।
्शहरी क्षेत्रों में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से अलग-अलग व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
राज्य में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
स्थानीय उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।