हल्द्वानी/ दुनिया में देवभूमि के नाम से मशहूर उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला एक मामला सामने आया है यह मामला न सिर्फ उत्तराखंड में मौत पर मुनाफाखोरी के नंगे सच को बेनकाब करता है बल्कि राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली एंबुलेंस सेवा की शर्मनाक विडंबना को भी रेखांकित करता है। उत्तराखंड स्थापना के रजत जयंती वर्ष में सूबे की सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा कि सरकार राज्य स्थापना के 24 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी बड़े शहरों तक में मुर्दों को मंजिल तक पहुंचने की कोई संतोष जनक व्यवस्था नहीं कर पाई।
मामला कुमाऊं के सबसे बड़े स्वास्थ्य के केंद्रो में से एक हल्द्वानी स्थित सुशीला तिवारी हॉस्पिटल के सामने का है जहां एक बहन को अपने भाई की लाश को घर तक ले जाने के लिए सरकारी एम्बुलेंस तो दूर पल्ले में पैसे ना होने के कारण कोई प्राइवेट एम्बुलेंस तक नहीं उपलब्ध हो पाई सरकारी एंबुलेंस गरीब की पहुंच से दूर होने के कारण भाई की मौत के रंज से पहुंच से दूर होने के कारण, भाई की मौत के दुःख में एक मजबूर बहन ने जब निजी एंबुलेंस वालों से संपर्क किया तो उन्होंने हल्द्वानी से 200 किलोमीटर दूर बेरीनाग तक शव को पहुंचने में बारह हजार रुपया का खर्च बताया गरीबी से लाचार बहन मुर्दे को मंजिल तक पहुंचाने के लिए दस – बारह हजार रुपए का खर्च वहन करने में असमर्थ थी लिहाजा उसे अपने मृत भाई की पार्थिव देह को टैक्सी की छत पर रस्सी से बांधकर 200 किलोमीटर दूर बेरीनाग लेकर जाना पड़ा।
पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग के तमोली ग्वीर गांव के रहने वाले गोविंद प्रसाद के परिवार की तंगहाली की दास्तान दिल दहला देने वाली है वे उम्र दराज होने के बावजूद अपने बेटे और दो बेटियों का पालन पोषण खेती-बाड़ी से जैसे तैसे कर पा रहे थे। ऐसे में उनकी बेटी शिवानी ने परिवार की स्थिति को देखते हुए एक अलग रास्ता अपनाया। वह लगभग सात महीने पहले काम की तलाश में हल्दूचौड़ आ गई और एक कंपनी में काम करने लगी और किराए के मकान में रहने लगी। शिवानी ने सोचा कि यदि उसका 20 वर्षीय भाई अभिषेक भी उसकी मदद के लिए साथ आकर काम करने लगे तो घर की स्थिति सुधर सकती है। लिहाजा दो महीने पहले अभिषेक को शिवानी ने हल्दूचौड़ बुला लिया और उसे भी अपनी ही कंपनी में नौकरी दिलवा दी। दोनों भाई-बहन किराए के कमरे में साथ रहकर नौकरी करने लगे। शिवानी के बताए के मुताबिक बीते शुक्रवार की सुबह दोनों साथ में काम पर गए एक घंटे बाद अभिषेक ने सिर में दर्द की शिकायत की और कंपनी से छुट्टी लेकर घर चला गया शिवानी ने कई बार उसे फौन किया लेकिन अभिषेक ने फोन नहीं उठाया।
जब शिवानी दोपहर में खाना खाने के लिए घर पहुंची तो वहां दवाई की बदबू आ रही थी और अभिषेक कहीं नजर नहीं आया ढूंढने के बाद वह रेलवे पटरी के पास बेसुध पड़ा मिला। पुलिस की मदद से उसे डॉ सुशीला तिवारी अस्पताल पहुंचाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया पोस्टमार्टम के बाद शिवानी ने अपने भाई के शव को एंबुलेंस से बेरीनाग ले जाने की कोशिश की लेकिन एंबुलेंस वालों ने उसे 10-12 हजार रुपये का खर्च बताया शिवानी के पास इतनी रकम नहीं थी सो उसने कई लोगों से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की। अंत में शिवानी ने अपने गांव के एक टैक्सी मालिक से संपर्क किया जो शव को टैक्सी की छत पर बांधकर बेरीनाग ले जाने को राजी हो गया। इस तरह शिवानी ने अपने भाई की लाश को टैक्सी की छत पर रखकर 200 किलोमीटर दूर स्थित अपने पैतृक गांव बेरीनाग पहुंचा पाई। ऐसे समय जबकि उत्तराखंड सरकार राज्य स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष में सूबे के भीतर जनकल्याण एवं विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है राज्य में गरीब की मौत पर शव को घर पहुंचने की समुचित सरकारी व्यवस्था ना होना और सरकार द्वारा मौत पर मुनाफा वसूली करने वालों पर अंकुश लगाने में असफल है।