देहरादून/ भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी और
व्हिसलब्लोवर संजीव चतुर्वेदी के मामले में न्यायिक प्रक्रिया लगातार पेचीदा होती जा रही है। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के दो और न्यायाधीशों ने हाल ही में इस केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है जिससे अब तक इस मामले से अलग होने वाले जजों की संख्या 13 हो गई है।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह किसी भी कानूनी मामले में एक अनोखी स्थिति बन गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और विभिन्न ट्रिब्यूनल के जज खुद को अलग कर चुके हैं।
संजीव चतुर्वेदी का कानूनी संघर्ष
संजीव चतुर्वेदी जो वर्तमान में उत्तराखंड में अनुसंधान से जुड़े कार्यों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लंबे वक्त से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे हैं। उन्होंने अपनी प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) और मूल्यांकन रिपोर्ट से जुड़े मामलों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
वर्ष 2015 में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी जब उन्हें प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। न्यायिक प्रक्रिया पर उठे सवाल
इस मामले में अलग होने वाले न्यायाधीशों की लंबी सूची अब एक बड़ा सवाल खड़ा कर रही है क्या यह महज संयोग है या फिर इस केस में कोई ऐसा दबाव या संवेदनशीलता है जिसके कारण जज इससे दूरी बना रहे हैं।
अब तक जिन न्यायाधीशों ने खुद को इस मामले से अलग किया है उनमें शामिल हैं
1- सुप्रीम कोर्ट 2 जज
2- उत्तराखंड हाईकोर्ट 2 जज
3- कैट चेयरमैन
4- शिमला ट्रायल कोर्ट के जज
5- दिल्ली और इलाहाबाद बेंच के 7 कैट जज
क्या आगे चलकर मिल पाएगा न्याय
संजीव चतुर्वेदी ने खुद पुष्टि की है कि लगातार जजों का इस मामले से अलग होना एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। अब सवाल यह उठता है कि क्या उनके कानूनी संघर्ष को किसी निष्पक्ष और ठोस फैसले तक पहुंचने का मौका मिलेगा या यह मामला इसी तरह अटका रहेगा???