चमोली/ कर्णप्रयाग स्थित कर्णशिला, वही शिला है जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार किया था। इसे श्री कृष्ण की हथैली भी कहा जाता है। कर्णप्रयाग को स्कंद पुराण में स्कंद प्रिया के नाम से जाना जाता था। पंच प्रयागों में सुविख्यात कर्णप्रयाग नाम का प्रयाग जिस कर्ण शिला के नाम पर पड़ रखा है। वही शिला अब भारी अतिक्रमण की चपेट में आ गयी है। अतिक्रमणकारियों ने तीन और से इस शिला को घेर लिया है। यहां तक कि अब उस दर्शनीय शिला तक जाने का पैदल मार्ग भी नहीं बचा है। जबकि हमारे बचपन में यहां केवल कुछ बेल पीपल के पेड़ और वेर के पौधे दिखते थे और कुछ बड़ी अन्य शिलाएं। कर्णप्रयाग की कर्णशिला का इतिहास महाभारत काल के सूर्य पुत्र योद्धा कर्ण से जुड़ा है। मान्यता है कि कर्णप्रयाग में आज जहां कर्ण मंदिर है, वहां पहले जल था और कर्ण शीला का कोना ही जल से बाहर दिखता था। योद्धा कर्ण ने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया था, वह भगवान सूर्य के वरदानी पुत्र और विष्णु भगवान के अनन्य भक्त थे। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है। कर्ण ने अपने कवच.कुंडल दान में दिए और अंतिम समय में सोने का दांत भी दे दिया था।कर्ण ने ऐसी भूमि पर अपना अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा जताई थी जहां पहले कभी किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो। लम्बे समय तक मैठाणा के हरिओम बाबा राकेश बाबा इस शिला की देख रेख करते थे उनके रहते यहां एक छोटा मंदिर और दानवीर कर्ण व भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति भी स्थापित हुई लेकिन स्थानीय राजनीति और अन्य कारणों से बाबा स्थान छोड़ कर मुंबई चले गये।
तब तक अतिक्रमण कम था। लेकिन उनके जाने के बाद अतिक्रमणकारियों ने इस शिला को घेर लिया। आज यह शिला पूरी तरह अतिक्रमण की चपेट में है। इसकी शिकायत भी स्थानीय लोगों द्वारा प्रशासन से की गयी कोर्ट में भी प्रकरण चला बेदखली के आदेश भी हुए लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों है। कर्णशिला से जुड़े संगठन श्री उमाशंकर सेवा समिति राम मंदिर कर्णप्रयाग ने स्थानीय संबंधितों से लेकर मुख्यमंत्री धामी तक भी शिकायती पत्र भेजा है। लेकिन समिति का कहना है कि सभी जगह शिकायत के बाद भी कोई भी इतनी बड़ी जांच को दरकिनार कर पटवारी कर्णप्रयाग ने सारी हेरफेर कर कब्जा करवा दिया। उसको मजिस्ट्रियल जांच की जानकारी नहीं थी। उमाशंकर सेवा समिति राम मंदिर कर्णप्रयाग ने कहा कि समिति पोखरी पुल से ऊमादेवी चौराहे के पुल तक सरकारी भूमि की पैमाइश कराई गई है जिसकी रिपोर्ट बनाई गई है इसके आधार पर एक पैलेस और एक होटल की भूमि भी बेदखली है और पुनः कर्णशिला से लगी भूमि जो कि सरकारी भूमि है तथा हमारी समिति के नाम भूमि हस्तांतरण की पत्रावली चमोली जिलाधिकारी के आदेश पर तीर्थाटन और पर्यटन के विकास की दृष्टि से उपयोग की जानी थी ।समिति का कहना है कि स्थानीय प्रशासन ने इतनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवम् धार्मिक धरोहर को भ्रष्टाचार कर गलत रिपोर्ट बना कर सारी भूमि प्रभावशाली लोगों को दे दी और पूर्व में की गई उच्चस्तरीय जाँच दबा दी। जब कि इससे पहले ही जिलाधिकारी ने चमोली के तात्कालिक उप जिलाधिकारी के नेतृत्व में बनाई कमेटी की रिपोर्ट में इस भूमि पर अतिक्रमण होना दर्शाया गया है और वर्तमान में लोगों द्वारा पुनः अतिक्रमण कर यहाँ की सुन्दरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, इतने विशाल निर्माण गंगा और प्रयाग के किनारे बनाने से परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रदूषित होना निश्चित है।
जो भूमि पूर्व जांच में सरकारी थीए वह अब प्रभावशाली लोगों की कैसे हो गई ये बड़े आश्चर्य की बात है, इस जाँच को दर किनारे कैसे कर सकते है बाबाजी ने भूख हड़ताल की और जाँच करवाई और यहाँ का कोई भी प्रशासनिक और कर्मचारी कर्णप्रयाग की तहसील का नहीं रखा गया यह माँग बाबाजी ने रखी थी। श्रीकृष्णा पैलेस और गंगा दर्शन अतिक्रमण में बने है तात्कालिक उपज़िला अधिकारी कर्णप्रयाग ललित नारायण मिश्र ने इनको इस भूमि से बैदखल किया है ये हाईकोर्ट में केस दर्ज है पर सरकार और ज़िला प्रशासन निष्क्रिय है और अतिक्रमणकारी इस प्रकार का कार्य कर रहे हैं। मंदिर से गंगा जी जाने वाला पौराणिक रास्ता तोड़ दिया और अब यहां से गंगा नहीं जा सकते। रास्ता पूर्णरूप से बंद कर दिया यहाँ से शमशान जाने का पौराणिक रास्ता भी बंद हो गया। समिति ने मुख्यमंत्री धामी को भी पत्र लिखा है। समिति का कहना है कि यदि ज़िला अधिकारी के संज्ञान में आये कि इतनी बार शिकायत करने पर भी अतिक्रमण कैसे जारी है और ज़िला अधिकारी यहां से आते जाते समय निकाल कर कर्णमंदिर का दर्शन करें और इस स्थान का उचित विकास करें। बता दें कि इस शिला पर स्वामी विवेकानंद ने 18 दिनों तक तपश्या उमादेवी। इतने महत्वपूर्ण स्थान को बचाने में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इस जिलाधिकारी चमोली ही इस प्रयाग और कर्णशिला को अतिक्रमण न्याय की अपेक्षा है समिति ने मांग की है कि किसी भी एजेंसी से जाँच करवाई जाय और जिस ने भी भ्रष्टता की है के विरूद्ध आपराधिक वाद पंजीकृत होना चाहिए।