गोपेश्वर/ आने वाली 9 नवंबर को उत्तराखंड पूरे 24 साल का हो जाएगा लेकिन इतने वर्ष बीतने के बाद भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ जैसी दुश्वारियां आज भी बनी हुई है। यहां के लोगों को आज तक पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क तक नसीब नहीं हो पाई है।
जिसके चलते लोगों को आवागमन करने में दिक्कत तो होती है साथ ही गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गों को अस्पताल तक पहुंचने में भी उनके साथ-साथ असहनीय पीड़ा सहन करनी पड़ती है लेकिन आज इतने साल बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के हालत नहीं बदल पाए है।
गांव के सामाजिक कार्यकर्ता लखपत सिंह ने बताया प्राणमति गांव की कौशल्य देवी पत्नी अनुज कुमार को मंगलवार तड़के प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। इसके बाद ग्रामीण कुर्सी की पालकी बनाकर गर्भवती महिला को क्षतिग्रस्त पैदल रास्तों से जान जोखिम में डालकर गांव से पैदल सात किमी की दूरी तय कर सितेल गांव लाए।
यहां से निजी वाहन से गर्भवती को नंदानगर चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। लोगों का कहना है कि आए दिन गांव के ग्रामीणों के लिए बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को कुर्सी की पालकी बनाकर सड़क मार्ग तक लाना चुनौती बना हुआ है।
सड़क की मांग को लेकर ग्रामीणों ने कई बार शासन-प्रशासन को मौखिक व लिखित रूप से अवगत कराया परन्तु कोई सुनने वाला नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि एक दशक से सिर्फ गांव में सर्वे किए जाने का ही आश्वासन ग्रामीणों को दिया जा रहा है।