देहरादून/ उत्तराखंड में बीजेपी सरकार के तीन साल पूर्ण हो गए हैं बतौर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले कुछ वक्त में इस बात की पूरी कोशिश की है कि वो जनता के दिल में जगह बना पाए सरकार ने यूसीसी, लैंड जिहाद और नकल विरोधी कानून के सहारे धामी सरकार तीन साल का जश्न मना रही है।
हालांकि पिछले एक महीने में बदले राजनीतिक माहौल ने धामी सरकार के इस जश्न के रंग को बहुत हद तक फीका जरूर किया है।
अग्रवाल व महेंद्र भट्ट के बयानों ने बढ़ाई धामी सरकार के लिए मुश्किलें
भले ही मुख्यमंत्री धामी को लेकर कोई सीधी नाराजगी न दिखती हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रेमचंद अग्रवाल का मामला और फिर महेंद्र भट्ट का सड़क छाप वाला बयान बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर गया है
इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि महज एक महीने में राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि एक कैबिनेट मंत्री की कुर्सी चली गई और राज्य में तीसरे राजनीतिक मोर्चे के तौर पर एक नया गठजोड़ दिखने लगा
आने वाले चुनावों के लिए भाजपा को बदलनी पड़ेगी रणनीति
जाहिर है कि ये बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी के जैसा होने वाला है अब सवाल ये भी है कि क्या 22 के विधानसभा चुनावों में सरकार रिपीट करके इतिहास रचने वाली बीजेपी को अब प्रेमचंद अग्रवाल और महेंद्र भट्ट के बयानों के बाद आगामी चुनावों के लिए रणनीति बदलनी पड़ेगी सवाल ये भी है
कि क्या मौजूदा वक्त में बीजेपी को लेकर राज्य की जनता में कोई नाराजगी है।
अग्रवाल के इस्तीफा को बताया जनभावनाओं का आदर
भले ही बीजेपी प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे को जनभावनाओं का आदर बताकर खुद को असहज हालात में लाने के बचने की कोशिश कर ही है परनु सच ये भी है कि बीजेपी के लिए ऐसा करना जनता के गुस्से को फौरी तौर पर शांत करने के लिए जरूरी था फिलहाल बीजेपी इस बात से इत्मिनान कर सकती है कि उसने अपने कैबिनेट मंत्री का इस्तीफा ले लिया है लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों को पता है कि 27 के विधानसभा चुनावों में भी अगर इतिहास बनाना है तो 25 की याद को जल्द से जल्द धुंधला करना जरूरी होगा।