ऊखीमठ, मद्महेश्वर घाटी में विराजमान भगवती राकेश्वरी मंन्दिर में सावन मास में होने वाले पौराणिक जागरो के गायन की सभी तैयारियां हुई पूर्ण।

न्यूज़ 13 प्रतिनिधि लक्ष्मण सिंह नेगी उखीमठ

ऊखीमठ/  मदमहेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी व पर्यटक गाँव रांसी के मध्य में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में सावन मास से शुरू होने वाले पौराणिक जागरो के गायन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है! युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में सावन व भाद्रपद दो माह तक गाये जाने वाले पौराणिक जागरो के माध्यम से देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक पग – पग पर विराजमान तैतीस कोटि देवी – देवताओं की महिमा का गुणगान किया जाता है!

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दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो का समापन आश्विन महीने की दो गते को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के बाद किया जाता है! पौराणिक जागरो के गायन से भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गाँव सहित मदमहेश्वर घाटी का वातावरण दो महीने तक भक्तिमय बना रहता है!

जानकारी देते हुए राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि इस बार भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरो का गायन आगामी 17 जुलाई से शुरू होगा! उन्होंने बताया कि इस बार 17 जुलाई को सावन मास की संक्रांति के साथ सावन महीने का प्रथम सोमवार व सोमवर्ती अमावस्या का दुर्लभ संयोग कई वर्षों बाद बन रहा है!

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शिक्षाविद भगवती प्रसाद भटट्, रवीन्द्र भटट् ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में पौराणिक जागरो के गायन की परम्परा युगों पूर्व की है तथा ग्रामीणों द्वारा पौराणिक जागरो के गायन की परम्परा का निर्वहन आज भी निस्वार्थ भावना से किया जाता है! युगों से जागर गायन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्ण सिंह पंवार ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो के माध्यम से भगवान शंकर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र, भगवान श्रीकृष्ण की जीवन लीलाओं के साथ तैतीस कोटि – देवी – देवताओं का आवाहन किया जाता है! मुकन्दी सिंह पंवार ने बताया कि दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो के गायन में धीरे – धीरे युवा पीढ़ी भी अपना योगदान देकर भविष्य के लिए परम्परा को जीवित रखने की रूचि रख रही है!

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उदय सिंह रावत, कार्तिक सिंह खोयाल, जसपाल सिंह जिरवाण ने बताया कि भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो के गायन से मदमहेश्वर घाटी का वातावरण भक्तिमय बना रहता है तथा पौराणिक जागरो के समापन पर मदमहेश्वर घाटी के हर गांव के ग्रामीण भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित कर विश्व समृद्धि व क्षेत्र के खुशहाली की कामना करते हैं!

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